Best wishes on New Year to one and all.
I always leave my hometown Patna with mixed feelings, some of hope, some of despair.What has remained consistent is the warmth of the people there.
I was visiting Patna recently ,at a time when frenetic activities and canvassing for the local municipal corporation elections were underway.The sights and sounds have crystallised in this hastily written poem.
साल
क्यों इतना शोर?क्यों इतना बवाल?
वो गया साल! ये नया साल!
ना कुछ बदला,ना कुछ सुधरा,
बस वही भेड़ की भेड़चाल।
वो गया साल! ये नया साल!
ना कुछ बदला,ना कुछ सुधरा,
बस वही भेड़ की भेड़चाल।
बंटी चुनाव से पूर्व हलवा पूड़ी,
बाकी दिन रहे तरसते रोटी दाल।
नेता रथ पर घूमता गाजे बाजे संग,
नंगे पैर दौड़ता गुदड़ी का लाल।
संकरी सड़कों पर दौड़ती जहाजनुमा गाड़ियां,
कौवा चला हंस की चाल।
बन रहे पुल और नहरें आज कागज़ पे,
सरकारी कोष ठन ठन गोपाल!
बाकी बचे की नोच खसोट में,
लगे हुए "सफेदपोश "और दलाल।
चंद चमचमाती इमारतों ने ढका,
पीछे पड़े कचरे,मलबे का टाल।
नर्सिंग होंम और क्लिनिक में होड़ लगी है,
बिलखते मरीज़ और चरमराते अस्पताल।
ज़ेवर ज़ेवरात की दमकती दुकानें,
पीला हुआ सब काला माल।
मत करो शोर,मत करो बवाल,
बस आस अवश्य मन में ये पाल,
वो गया साल, ये नया साल !
मत करो शोर,मत करो बवाल,
बस आस अवश्य मन में ये पाल,
वो गया साल, ये नया साल !