दिनांक 1 मई, 2022 को पोस्ट किए मेरे ब्लॉग Albatross ,में कुछ अधूरा रह गया था। मैं अपनी बात, भाषा के बंधन के कारण सबको पूरी तरह से नहीं पहुंचा पाई थी।
इस कार्य को मेरे मित्र, कवि, साहित्यकार और अनुभवी ब्लॉगर श्री विश्वमोहन ने मेरी कविता का अनुवाद कर के पूरा किया है। उनका अनुवाद सिर्फ भाषा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने मेरी कविता के मूल भावों को भी पूरी तरह से आत्मसात एवं समाहित कर लिया है।
उनको मेरा आभार और धन्यवाद।
छेदूं सागर की छाती को,
फिसलूं उसके वक्षस्थल पर।
डूबूं - उतरु जलराशि के,
छहरु हर लहर उत्तल पर।
पर नैनों में सजे हैं सपने,
दूर दिव्य -से देश में होता।
अल्बाट्रोस, मैं अलबेला - सा!
अपने अकेलेपन में खोता।
लंबे, सुंदर, उजले डैने,
अंतरिक्ष को भरते हैं।
नील गगन में श्वेतवर्णी ये,
झिलमिल झिलमिल करते हैं।
ऊपर मस्तुल को फेरूं मैं,
नीचे फेन जलपोत को धोता।
अल्बाट्रोस, मैं अलबेला - सा!
अपने अकेलेपन में खोता।
मैं न जानूं, पर पर मेरे,
सौभाग्य सदा संग चलता है।
नाविक के तीर कमानों में,
हिंसा का हलाहल पलता है।
काल चक्र की वक्र गुफा से,
गुंजित मैं निर्भीक उद्घोष हूं।
इस मेले में चले अकेला,
मैं निस्पृह-सा अल्बाट्रोस हूं।
अंबर के नीले अंबर की,
शाश्वत शांति की छाया।
पुनीत प्रतिश्रुति प्रतिबद्ध,
प्रारब्ध पालन मैं घर आया।
अपहृत आंखों की स्याही में
अस्फुट-सा मैं अपरितोष हूं।
इस मेले में चले अकेला,
मैं निस्पृह - सा अल्बाट्रोस हूं।
अल्बाट्रोस पक्षी के बारे में कुछ जानकारी - यह एक बहुत बड़ा समुद्री पक्षी है जिसके पंख बहुत लंबे और शक्तिशाली होते हैं। ज़्यादातर दक्षिणी महासागर में पाया जाता है। स्वभाव से एकपत्निक होता है और आजीवन अपने ही जोड़े के साथ सहवास करता है।
आपकी जानकारी के लिए यह भी बताना अपेक्षित होगा, कि मैंने इस कविता के तीसरे अनुच्छेद में अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध रोमांटिक (छायावादी/स्वच्छंदतावादी) कवि Samuel Taylor Coleridge की प्रसिद्ध कविता The Rime of the Ancient Mariner का संदर्भ लिया है।
आपकी जानकारी के लिए यह भी बताना अपेक्षित होगा, कि मैंने इस कविता के तीसरे अनुच्छेद में अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध रोमांटिक (छायावादी/स्वच्छंदतावादी) कवि Samuel Taylor Coleridge की प्रसिद्ध कविता The Rime of the Ancient Mariner का संदर्भ लिया है।
छेदूं सागर की छाती को,
फिसलूं उसके वक्षस्थल पर।
डूबूं - उतरु जलराशि के,
छहरु हर लहर उत्तल पर।
पर नैनों में सजे हैं सपने,
दूर दिव्य -से देश में होता।
अल्बाट्रोस, मैं अलबेला - सा!
अपने अकेलेपन में खोता।
लंबे, सुंदर, उजले डैने,
अंतरिक्ष को भरते हैं।
नील गगन में श्वेतवर्णी ये,
झिलमिल झिलमिल करते हैं।
ऊपर मस्तुल को फेरूं मैं,
नीचे फेन जलपोत को धोता।
अल्बाट्रोस, मैं अलबेला - सा!
अपने अकेलेपन में खोता।
मैं न जानूं, पर पर मेरे,
सौभाग्य सदा संग चलता है।
नाविक के तीर कमानों में,
हिंसा का हलाहल पलता है।
काल चक्र की वक्र गुफा से,
गुंजित मैं निर्भीक उद्घोष हूं।
इस मेले में चले अकेला,
मैं निस्पृह-सा अल्बाट्रोस हूं।
अंबर के नीले अंबर की,
शाश्वत शांति की छाया।
पुनीत प्रतिश्रुति प्रतिबद्ध,
प्रारब्ध पालन मैं घर आया।
अपहृत आंखों की स्याही में
अस्फुट-सा मैं अपरितोष हूं।
इस मेले में चले अकेला,
मैं निस्पृह - सा अल्बाट्रोस हूं।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २० मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपका बहुत आभार और धन्यवाद श्वेता जी, जो आपने मुझे अपने विशिष्ट ब्लॉग जगत का हिस्सा बनाया।🙏
DeleteSo proud of you Rashmi ❤❤
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद और आभार।
Deleteअल्बाट्रोस के बारे में कविता के माध्यम से जानकार एक नया अनुभव हुआ,, बहुत अच्छी जानकारी
ReplyDeleteअल्बाट्रोस के बारे में अंग्रेज़ी जगत में बहुत सारी किंवदंतियाँ हैं।मैंने उसे अपना जामा पहना दिया! श्री विश्वमोहन ने अनुवाद भी खूब किया।
Deleteआपका धन्यवाद।😊
अल्ट्रा बोस पूर्णतया एक नई जानकारी । भावपूर्ण रचना । बेहतरीन अनुवाद ।
ReplyDeleteधन्यवाद और आभार, मैं कुछ नया कह पाई। अनुवादक को भी नमन।
Deleteशानदार जानदार लाजवाब उलेखनिए अनुवाद एक खूबसूरत रचना की 👌👌
ReplyDeleteधन्यवाद ! सही कहा, बेहतरीन अनुवाद..विश्वमोहन से कम की उम्मीद नहीं !☺️
DeleteAapki rahna Bemishal Amit Ranjan 😍
ReplyDeleteधन्यवाद रवि। कविवर ने अनुवाद कर चार चांद लगा दिए !☺️
Deleteपहले की तरह बहुत सुंदर रचना रश्मि, अनुवादक को भी बहुत धन्यवाद जिसने हमें हिंदी संस्करण से रुबरु कराया , डॉ मीना बिरुवा
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद मीना।सच में अनुवाद में मूल के साथ सूद भी मिल गया !!😊
Deleteअद्भुत और कोई शब्द नहीं
ReplyDeleteहर्दिक आभार!
Deleteबहुत बढ़ियाँ।
ReplyDeleteबधाई
हर्दिक आभार!
Deleteप्रिय रश्मि जी,अल्बाट्रोस पर आज हुबहू हिन्दी रचना पढ़कर अच्छा लगा। विश्वमोहन जी के अनुवाद द्वारा रचना को विशिष्ट शब्दों की सौगात मिली है।इस जीवट और अनंत यायावर पक्षी पर मूल और अनुदित रचना दोनों अत्यंत सराहनीय हैं।विश्वमोहन जी भी सर्वत्र अपने बुद्धि कौशल की छाप छोड़ने में सफल रहते हैं ।आप दोनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🌺🌺🌷🌷🙏
ReplyDeleteधन्यवाद रेणु जी !
Deleteअनुवाद के बारे में आपकी टिप्पणी के बाद कुछ कहने को रहा नहीं।😀🙏
अंबर के नीले अंबर की,
ReplyDeleteशाश्वत शांति की छाया।
पुनीत प्रतिश्रुति प्रतिबद्ध,
प्रारब्ध पालन मैं घर आया।
अपहृत आंखों की स्याही में
अस्फुट-सा मैं अपरितोष हूं।
इस मेले में चले अकेला,
मैं निस्पृह - सा अल्बाट्रोस हूं।
👌👌👌👌🌷🌷🙏
जी, आभार।
Deleteअल्बाट्रोस - नाम सुना था । पहला मौक है जब उसके बारे में इतना जाना है
ReplyDeleteऔर समझ में आया कि इतना अकेला होकर भी क्या वाकई वो मन से वो सुखी है
या हमारी समझ दिशा हीन है।
भावपूर्ण एवं मनमोहक सुन्दर ! अति सुन्दर सृजन !
धन्यवाद आतिश जी !
Deleteखुशी हुई कि कविता और उसके उत्कृष्ट अनुवाद से आपको कुछ नया जानने और सोचने का मौका मिला।😊
As composing something is an art, so is translation. . My obeisance to the translator who has perfectly retained the feel and essence of the poem .
ReplyDeleteSo true Saima ! Translation is a tricky business..one that can make or mar ! Vishwamohan has done an excellent job. Thanks.
Deleteयदि चंदन की तुनक लचकीली लकड़ी पर दूध की छाली का लेप चढ़ा दिया जाय तो जो प्रतिमा बनेगी, वह है श्री सुमित्रानंदन पंत जी की! प्रकृति के इस सुकुमार कवि की आज जन्म तिथि है। इस अवसर पर आज की इस रचना का एक ख़ास महत्व है। पंत जी भारतीय काव्य साहित्य में जिस परम्परा का प्रतिनिधित्व करते हैं उसी की पूर्ववर्ती अंग्रेज़ी छाया के प्रतिनिधि शब्द-छायाकार हैं – ‘William Wordsworth’ और ‘Samual Taylor Coleridge’! इनमें से ‘Coleridge’ की प्रसिद्ध कृति ‘राइम ओफ़ एनसीएंट मैरीनर’ के पात्र “अल्बाट्रौस’ के कतिपय तन्तुओं को अपनी रचना के ताने-बाने में बुनती इस रचना की आज के दिन यहाँ उपस्थिति काव्य-जगत और पंत जी की उस छायावादी परम्परा के प्रति भी सम्मान है। मूल अंग्रेज़ी कविता के रचनाकार, रश्मि, को इस हिंदी अनुवाद से पाठकों को परिचित कराने और सभी टिप्पणीकारों एवं प्रशंसकों द्वारा की गयी उत्साह-वर्धक टिप्पणियों के लिए हृदय तल से आभार!!!
ReplyDeleteइस मेले में चले अकेला.....बहुत सुन्दर 👌👌
ReplyDeleteजी, आभार।
DeleteBahut hi sundar rachna . Each word has been so emotionally chosen. Loved it 👌👌
ReplyDeleteThe above comment is by me , Namita. ( PSC) Didn't want it to go as an anonymous comment🙂
ReplyDeleteThank you Namita!
Deleteअद्भुद लाजवाब।
ReplyDeleteआभार और नमन।
DeleteShaandaar zabardast Zindabad
ReplyDeleteदमदार शुक्रिया😀
Deleteअति उत्तम
ReplyDeleteहर्दिक आभार!
Deleteअच्छी कविता का
ReplyDeleteभावपूर्ण अनुवाद
जी, अत्यंत आभार।
Deleteकविता का नवीन कलेवर भाषा शैली, शब्द विन्यास और गूढता का अद्भुत संगम है, ये रचना तो शानदार है ही उसपे हिंदी में पढ़ना और भी आनंद दे गया । आदरणीय विश्वमोहन जी का बहुत धन्यवाद । रश्मि जी इस नायाब कविता के लिए आपको बधाई ।
ReplyDeleteजी, अत्यंत आभार!!!
Deleteअल्बाट्रोस के बारे मे अच्छी जानकारी विश्वमोहन जी का आभार
ReplyDeleteReply
जी, अत्यंत आभार आपका और मूल कवयित्री डॉक्टर रश्मि का!
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअंबर के नीले अंबर की,
ReplyDeleteशाश्वत शांति की छाया।
पुनीत प्रतिश्रुति प्रतिबद्ध,
प्रारब्ध पालन मैं घर आया।
अपहृत आंखों की स्याही में
अस्फुट-सा मैं अपरितोष हूं।
इस मेले में चले अकेला,
मैं निस्पृह - सा अल्बाट्रोस हूं।
अल्बाट्रोस के बारे में मैंने तो पहली बार जाना। आपकी कविता पढ़ी थी पर इस बारे में जानकारी नहीं होने से कोई टिप्पणी नहीं कर पायी...
बहुत बहुत धन्यवाद आ. विश्वमोहन जी का इस सुन्दर ए्वं सम्पूर्ण अनुवाद के लिए...
रश्मि जी आज आपको फुर्सत से पढ़ा बहुत ही लाजवाब लिखते हैं आप
सही कहा आ.विश्वमोहन जी ने आज प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पंत जी के जन्मदिन पर प्रकृति पर लिखी आपकी सभी रचनाओं का खास महत्व है...अमलतास का भी..
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं आपको।
जी, अत्यंत आभार सुधा जी कि यह अनुवाद आपको पसंद आया।
Deleteआपके सुंदर वचनों के लिए धन्यवाद और आभार,सुधा जी।🙏
Deleteआज फिर से यहाँ आकर मन को सुकून मिला प्रिय रश्मि जी।पाँच लिंक मंच पर आपके ब्लॉग पर विशेष प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।🙏❤❤
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