What could she be asking for in her prayer ? |
This picture with the caption, was posted today in one of my Whatsapp group. I found it poignant, and it set off a train of thoughts.There was a lot she could have asked for, but she chose to tell instead !
चमकती धूप में,
कभी पत्थर तोड़ती हूँ,
कभी ईटें ढोती हूँ।
छूटा गांव,
लड़खड़ाते पांव
सूख के हो गए लकड़ी,
और हाड़ को जकड़ी चमड़ी।
जहाँ ज़रा पकड़ छूटी,
तो चरमरा कर झुर्रियों
का ढेर बन गई।
हाथों के छालों की गढ़ाई,
डिज़ाईनर मेंहदी भी शर्मायी।
शरीर पर पड़ी गाठें,
और चिपक के एक हो गईं आंतें।
मेरी नींद है इतनी गाढ़ी,
कि सपनों का आना भी भारी।
तपता ,सिलता ,मेरा बिस्तर,
ओढ़ना मेरा विस्तृत अम्बर।
मालिक से नज़रें बचा कर,
कुछ डरे और कुछ सकुचा कर,
धरती का एक छोटा टुकड़ा,
मैं चुरा ले आयी हूँ।
रिक्शा वाले पड़ोसी से,
कुछ आसमान मांग लायी हूँ।
तुम्हारा आना जो तय है,
मेरे मन में भी भय है,
अतिथि हो, तुम कुछ दिन मेरे,
कष्ट तुम्हें न कोई घेरे,
काम बहुत ही आम किया है,
भगवन!
मैंने तुम्हारा इंतेज़ाम किया है!!
बहुत सुंदर। अपने आराध्य अतिथि के प्रति अतिथेय भक्त के समग्र समर्पण की निश्छल अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteधन्यवाद। समर्पण के साथ कर्तव्य बोध भी है।
Deleteसखी -
ReplyDeleteबड़ी ख़ूबसूरती से तुमने
मेरा दर्द बिखेरा है
दिल में उतर जो देखो तो,
जो दिख रहा
उससे कहीं बढ़
रास से
मेरे मन में राम का
बसेरा है....
ये इश्क़ कहाँ आसान?
Poignant expression indeed Rashmi! Sabina
सिर्फ इश्क ही नहीं, अपनी ज़िम्मेदारी भी निभाई
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteप्रिय रश्मि जी,आजीवन विपन्नता से जूझते शोषित लोग भी निष्ठुर ईश्वर के प्रति उतनी ही श्रद्धा रखते हैं जितनी कथित संभ्रांत लोग।ये चित्र देखकर आँखें नम हो गई।आपने मानो किसी के मन में झाँककर सब लिख दिया।
ReplyDelete---------*-------------*
निष्ठुर ईश्वर से क्या माँगू?
सबको सब दिया
मेरी झोली खाली है !
पर नत है समक्ष शीश मेरा
देव ! तुमसे ये लगन निराली है!
खुद मलिन रहूँ पर तुम्हें सुख दूँ
भले छतहीन हूँ मैं तुम्हें छत दूँ!
तुमसे बढ़कर क्या मान मेरा
अतिथि मेरी पर्ण कुटी के तुम
आज गगन चढ़ा अभिमान मेरा!
🙏🙏
धन्यवाद रेणु जी। आपकी सुंदर रचना वो सब भी कह गयी है जो मैं नहीं कह पाई थी।
Deleteहृदयस्पर्शी पंक्तियां दी।
Deleteसस्नेह प्रणाम।
शुक्रिया प्रिय श्वेता ♥️
Deleteझझकोर गयी ये पंक्तियाँ
ReplyDelete😞
छूटा गांव,
लड़खड़ाते पांव
सूख के हो गए लकड़ी,
और हाड़ को जकड़ी चमड़ी।
जहाँ ज़रा पकड़ छूटी,
तो चरमरा कर झुर्रियों
का ढेर बन गई।
हाथ के छालों की गढ़ाई,
डिज़ाईनर मेंहदी भी शर्मायी।
शरीर पर पड़ी गाठें,
और चिपक के एक हो गईं आंतें।
मेरी नींद है इतनी गाढ़ी,
कि सपनों का आना भी भारी।////
धन्यवाद
Deleteअसीम प्रेम से निहारती आंखे, न जाने क्या क्या बयां करती आंखे: एक अनमोल प्रस्तुति रश्मि द्वारा भावनाओं में ख़ुद डूबकर
ReplyDeleteधन्यवाद विजय।पूछती, बोलती आंखें!
DeleteLoved your expressions ! So realistic yet so emotional ! It's such a thought provoking picture.
ReplyDeleteThanks Namita.
DeleteLovely poem! Reflects every day reality of the unquestioned devotion to God without any expectation by millions of people who are poor in terms of wealth but very rich in terms of faith and values.
ReplyDeleteShashank
Thanks Shashank.Yes, unwavering devotion which gives them the confidence to provide "shelter" to Someone who perhaps erred on providing shelter to them.
Deleteनिःशब्द हूँ , इस चित्र और आपकी रचना को पढ़ कर । रेणु ने अपनी पंक्तियों से और झकझोर दिया ।
ReplyDeleteईश्वर तो श्रद्धा में वास करता है ।
आभार आपका🙏
Deleteआपकी लिखी रचना सोमवार 5 सितम्बर ,2022 को
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
आप सबों का आशीष बना रहे ! धन्यवाद🙏
Deleteइस रचना ने मन इतना झकझोर के रख दिया जो सच्चाई और ईमानदारी की मिसाल है। तुम्हारे शब्दों से जुड़ाव महसूस कर सकते हैं। निखरती जा रही तुम्हारी रचनाएं।
ReplyDeleteधन्यवाद। ऐसे ही प्रोत्साहित करते रहो।🙏
Deleteसमर्पण और.कर्तव्य. बोध के सूक्ष्म भावों.को जीवंत करती मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसस्नेह।
धन्यवाद और आभार,श्वेता जी🙏
Deleteधन्यवाद और आभार, कामिनी जी।🙏
ReplyDeleteवाह!!!!
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब शब्दचित्रण एक गरीब मजदूर के कुपोषित दुर्बल शरीर और लगातार गरीबी से जूझती दिनचर्या तो वहीं गणपति उत्सव का उल्लास और मन में अथाह श्रद्धा अपने पूज्य के प्रति आतिथ्य भाव।
कमाल का लेखन
बहुत ही हृदयस्पर्शी ।
मेरा लेखन तो गौण है,यह चित्र बहुत कुछ बोल रहा है।
Delete😊आपको बहुत धन्यवाद,सुधा जी।
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteजी धन्यवाद
Deleteहृदय स्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteसब कुछ पास होते हुए भी सभी को लेने की चाह है पर भक्ति देखिए एक दीन हीन की कि देव को आतिथ्य देने की अंतर हृदय से पुकार है।
सुंदर।
धन्यवाद कुसुम जी। ये हमारे नज़रिए का खोट है, कि हम इन्हें "दीन हीन "समझते हैं।
Deleteलाजवाब प्रस्तुति रश्मि - मीना
ReplyDeleteधन्यवाद मीना
Delete'मेरी नींद है इतनी गाढ़ी,
ReplyDeleteकि सपनों का आना भी भारी।' - वाह। बहुत सुंदर, हृदयस्पर्शी और मर्मस्पर्शी सृजन।
अत्यंत आभार !🙏
Deleteबहुत बहुत अच्छा। मेरे में वो काबिलियत नहीं है कि इस रचना की उचित प्रशंसा कर सकूं। बहुत अच्छा..Rajeev jha.
ReplyDeleteइतनी बड़ी प्रशंसा तो कर दी।
Deleteधन्यवाद।😊
सुन्दर अति सुन्दर पा पा
ReplyDeleteधन्यवाद पापा।लिखना आप और मम्मी से ही सीखा है🙏
Deleteबहुत अच्छी रचना दिन-ब-दिन निखरती हुई रश्मि
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद अंजुला😊
Deleteसुन्दर रचना आदरणीय ।
ReplyDeleteआभार आपका।🙏
Deleteबहुत सुंदर मोना दी।
ReplyDeleteधन्यवाद अर्चु
DeleteCould visualize every line...beautiful ❤❤
ReplyDeleteThank you so much, Urvashi.😊
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति । आभार दोस्त । आरती
ReplyDeleteतुम्हारा आभार दोस्त !😊
Deleteइस ब्लॉग का चयन किया है
ReplyDeleteएक ही ब्लॉग से परिचय हेतु
अनुमति की प्रत्याशा में
सादर
चित्र जितना अर्थपूर्ण, उतनी ही सार्थक व हृदयस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteये चित्र आधारित सृजन अनायास आँखें नम कर देता है।शुक्रिया आपका रश्मि जी संवेदनाओं का गूढता से परिचय करवाने के लिए ।साधन संपन्न लोगों की दिखावे की भक्ति से कहीं श्रेष्ठ है किसी साधन विहीन के ईश्वर को समर्पित ये विशुद्ध भाव 🙏
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