आपबीती को लघुकथा का शक्ल दे दिया है मैंने।
पाती
आंगन का कोना । कोने में अलमारी। लकड़ी को दीमक चाट गए थे। लोहे को जंग खा गई थी।एक दो दराज़ अपना दम साधे किसी तरह अटके थे। दराज़ में बिछा था कागज़।कागज़ जिस भी रंग का होगा, धूल ने उसकी पहचान मिटा दी थी।कबाड़ी वाला भी मुंडी डुला कर चला गया था। अब तो अग्नि दाह ही बचा था। सर्दी में किसी गरीब का भला हो जाएगा।
मालूम नहीं क्यों, दराज़ के सौ सुराखों वाला कागज़ को उठा कर देखा। बांछें खिल गईं !समय के पीलिया से ग्रसित, हल्का नीला कागज़ और उसपर धुंधली होती स्याही पर एक चिर परिचित लिखावट।लिखावट मेरी माँ की...उनकी पहचान।मुझसे बातें करते हुए सुंदर, सुडौल अक्षर।अक्षर को जोड़ के शब्द, शब्दों को पिरो कर वाक्य, और वाक्यों को सजाते हुए पैराग्राफ।कहीं कोई कटौती नहीं। उनके व्यक्तित्व का बिम्ब। उनके भाव का दर्पण।चिट्ठी क्या थी, अंतर्देशीय पत्र के तीन पन्नो में उनकी पूरी दुनिया सिमटी हुई थी!हल्की फुल्की गपशप , गंभीर बातें ,कुछ दबी सी फिक्र , लुटाया हुआ लाड़ ,सब शब्दों में लिपटे हुए थे ।मेरी तरल आंखों के सामने पूरा दृश्य घूम गया। कुछ सुगंध भी हवा में फैल गयी, शायद ये मेरे मन का भ्रम था।पाती को छाती से लगाया, तो समय का वो टुकड़ा मेरे पास था जब किसी कीबोर्ड के डिलीट बटन में कोई ज़ोर नहीं था !
Behtareen
ReplyDeleteधन्यवाद, अजय।
DeleteTouches the inner core. आँख छलक पड़ी! sabina
ReplyDeleteThank you, Sabina.
Deleteआंखे नम हो गई
ReplyDeleteBeautiful Expressions 😍
ReplyDeleteThanks Namita
DeleteShabd Kam Hai bhavnaon ko vyakt karne ke liye
ReplyDeleteA simple writing which packs a world of emotions and vividly brings to life the world gone by. One can imagine what a cyclone of feelings must have lifted you off your feet while reading your late mother’s letter…
ReplyDeleteThanks Shashank. Anything which connects you to your pleasant past evokes strong nostalgia...something best appreciated as we age.
DeleteMan Bhar aaya. Ek muskrat bhi dastak dene lagi - aunty yaad aa gayi.
ReplyDeleteThank you,Sampa. You have been a part of tha6 stage of my life.
Deleteमम्मी के गाने की आवाज़ - आ जा रे आ..आ निंदिया तू आ- सुनायी देने लगी।
ReplyDeleteI know. She sang beautifully.
DeleteMemories to be cherished.. love unconditional
ReplyDeleteThe old version of letters are such a delight. Sadly we are realising them now. Thank you, Saima.
DeleteBeautiful ex preesion.I am numb and dumb.
ReplyDeleteएक चिर परिचित लिखावट।लिखावट मेरी माँ की...उनकी पहचान।मुझसे बातें करते हुए सुंदर, सुडौल अक्षर।अक्षर को जोड़ के शब्द, शब्दों को पिरो कर वाक्य, और वाक्यों को सजाते हुए पैराग्राफ।कहीं कोई कटौती नहीं। उनके व्यक्तित्व का बिम्ब। उनके भाव का दर्पण।चिट्ठी क्या थी, अंतर्देशीय पत्र के तीन पन्नो में उनकी पूरी दुनिया सिमटी हुई
ReplyDeleteअत्यंत हृदयस्पर्शी एवं भावपूर्ण सृजन।
खत नहीं खजाना था बीती यादों का...
सच कहा, खज़ाना है। काश, थोड़ा और संजो कर रखा होता।धन्यवाद सुधा जी।
Deleteखूबसूरत रचना
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार जी।
Deleteभावपूर्ण
ReplyDeleteधन्यवाद हिमकर जी।
Deleteअनिता जी, आपको भी सादर धन्यवाद और आभार इस प्रविष्टि के लिए।ये मेरे लिए गर्व और प्रोत्साहन का
ReplyDeleteस्त्रोत है।
And a heartfelt thanks to all who have left their messages but sadly omitted their names.
ReplyDeleteअंतर्देशीय पर पसरी शब्दों की पाती,
ReplyDeleteथमा गई दिल को, यादों की थाती।
होठों की हरकत, नयनों की नमी
सूनेपन की अंधियारी, आंखों में छाती।..... संवेदना का सरगम।
आपकी इस सुंदर काव्यात्मक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद
Deleteबड़ी ही उम्दा अभिव्यक्ति
ReplyDeleteउन दिनों इन ख़तों में जो अहसास होते थे,उनमें एक अलग ही परवाह होती थी ख़त के माध्यम से दुख सुख बाँटते,बहुत सुंदर ,आदरणीया शुभकामनाएँ ।
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